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Description

‘भगवद गीता यथारूप – मानव समाज के लिए सर्वोच्च मार्गदर्शक! सफलतापूर्ण और अर्थपूर्ण जीवन जीने की कूँची है भगवद गीता यथारूप! इस पुस्तक में लेखक ने वैदिक तत्वज्ञान की बारीकियों को अत्यंत सरलतापूर्वक प्रस्तुत किया है। यह पुस्तक जीवन के प्रति वास्तविक दृष्टिकोण से जीवन को देखने की राह दिखाता है और जीवन की समस्याओं के लिए व्यावहारिक उपाय भी दर्शाता है। जीवन के परम सत्य को जानने की जिज्ञासा रखने वाले प्रत्येक व्यक्ति यह पुस्तक अवश्य पढ़ना चाहिए।

भगवान श्री कृष्ण भगवद गीता के 18 वे अध्याय के 5 वे श्लोक में कहते है;

“यज्ञदानतप:कर्म न त्याज्यं कार्यमेव तत् ।
यज्ञो दानं तपश्चैव पावनानि मनीषिणाम् ॥ ५ ॥”

अर्थात, व्यक्ति को यज्ञ, दान और तपस्या का कभी भी त्याग नहीं करना चाहिए; उनका पालन अवश्य होना चाहिए। वास्तव में यज्ञ, दान और तपस्या श्रेष्ठतम व्यक्ति को भी शुद्ध बनाते है।

ज्ञान का दान अन्य सभी दानों में श्रेष्ठ माना गया है जो न तो कभी नष्ट होता है और न कभी चोरी होता है अपितु सदैव व्यक्ति के पास रहता है।  इसलिए भगवद गीता यथारूप के ज्ञान का दान देने से बड़ा और क्या दान हो सकता है!

तो चलिए अपने मित्रों और प्रियजनों को इस दिव्य और मंगलमय भेंट का दान करें और अपने तथा उनके जीवन को सफल बनाएं।